ज़ख्मों को मरहम न मिले, क्या यही इलज़ाम था
बादलों के घूँघट में छिपे चाँद को किया सलाम था
मेरे लफ़्ज़ अलफ़ाज़ से इस जहां में रौशन हुए
मगर मुझे गुम करने का उनका इंतज़ाम था
अक्सर तूफ़ान पंछियों की, बस्तियाँ उजाड़ देते हैं
रियाज़ में मेरा अज़ीज़, उसी को मेरा सलाम था
मेरी इल्तिज़ा में हर एक नब्ज़ थी उसके नाम की
फ़िर भी चैन बेचैन और इक दर्द बेलगाम था
क्या करूँ एहतिराम से "ओमी" ने तारीफ़ बहुत की
लेकिन अपने तसव्वुर में वो खुद ही बदनाम था
- ओम राज पाण्डेय "ओमी"
क्या करूँ एहतिराम के साथ ओमी ने तारीफ़ बहुत की
जवाब देंहटाएंलेकिन अपने तसब्बर में वो खुद ही बदनाम था
.........omi ji aap ki ghazal ka apna alag rutwa rahta hai ,, jab bhi aap likhte hain aisa lagta hai ki haqiqat ho aur kitna gambhir hai kavi .... apni kalam ke prati
thanx
yours blog is very good...
जवाब देंहटाएंkeep it up
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क्या करूँ एहतिराम से ओमी ने तारीफ़ बहुत की
जवाब देंहटाएंलेकिन अपने तसब्बर में वो खुद ही बदनाम था
बहुत खूब
बहुत खूब धन्यवाद्|
जवाब देंहटाएंबहुत खूब गज़ल
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
बहुत खूब ...सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंब्लागजगत पर आपका स्वागत है ।
जवाब देंहटाएं.सुन्दर रचना............
wahhh wahhhhhhh .........
जवाब देंहटाएंक्या करूँ एहतिराम से ओमी ने तारीफ़ बहुत की
लेकिन अपने तसब्बर में वो खुद ही बदनाम था
ज़ख्मों को मरहम न, मिले क्या यही इलज़ाम था |
जवाब देंहटाएंबादलों के घूँघट में छिपे, चाँद को किया सलाम था ||
kya likhu sab kuchh likh diya hai
जवाब देंहटाएं,,,,...
thanx
thnxxxxx mujhe padne ke liye
जवाब देंहटाएंमेरी इल्तिज़ा में हर एक नब्ज़ थी उसके नाम की
जवाब देंहटाएंफ़िर भी चैन बेचैन और इक दर्द बेलगाम था
umda she'r .........Ameen!!